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अब घटना घटी है तो सवाल तो उठेंगे ही


प्रधान संपादक: अनिल कुमार मिश्रा

मुंबई 21 जुलाई (वाणी): संविधान के स्तंभों में एक दूसरे का अतिक्रमण होना कोई शुभ संकेत नहीं है! सबकी अपनी अपनी हद है। लेकिन अब विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका मे एक दूसरे के कार्य क्षेत्र में तांकझांक आम बात है। हर कोई मौके की तलाश में है।

कार्यपालिका का कार्य कानून व्यवस्था बनाए रखने की है न कि दंड देना। लेकिन ‘ठोक दो’ सरकार को शायद न्यायपालिका पर बहुत हद तक भरोसा नहीं है इसीलिये अपनी सीमा का विस्तार करते हुए तुरंत दंड की व्यवस्था कायम की वह भी सबके लिए नहीं, केवल जो उन्हें पसंद नहीं है सिर्फ उनके लिए! आज भी कार्यपालिका और न्यायपालिका की सुस्त व्यवस्था के कारण एक से बढ़कर एक दूर्दांत अपराधी और आतंकवादी भारतीय जेलों को अपनी ऐशगाह बनाकर मजे ले रहें हैं और उनपर करोड़ों रुपए खर्च किया जा रहा है जो कि आम जनता के खून पसीने की कमाई का अंश है।

संविधान के तीनों अंग यह भलिभांति जानते हैं कि अपराध और सियासत का चोली दामन का साथ है और यह बात आम जनता भी भलिभांति जानती है और सभी यह भी जानते है कि किसी रोग या दुर्व्यस्था को खत्म करना है तो जड़ पर प्रहार करना होता है लेकिन सब कुछ जानते हुए भी सरकारें अपने अपने हिसाब से कुछ टहनियों को कांटछांट कर अपनी पीठ थपथपा लेती हैं क्योंकि वह नहीं चाहते कि सच्चाई सबके सामने आए और उनका राजफाश हो! छोटे छोटे गूर्गो की बलि चढ़ाकर सियासतदानों पर सफेदी की एक मोटी कलई चढ़ा दी जाती है जो कि तमाम छोटे बड़े अपराधियों और बेगुनाहों के खून से लथपथ होती है।


हैदराबाद की घटना तो लोगों के समझ में आयी कि न्यायपालिका की व्यवस्था में न्याय में बिलंब होता, लेकिन उत्तर प्रदेश में तो सियासत के अमानवीय “विकास” में बहुत से सफेदपोशों से अपराध की कलई के खुरचे जाने की बहुत बड़ी संभावना थी जिसे “ठोक दो” सरकार ने शरणागत किवदंतियों को आधार बनाकर ठोक दिया जबकि न्यायिक प्रक्रिया में भी उसे फांसी की सजा या ताउम्र सलाखों के पीछे रहने की सजा तो मिलना तय था, सबूतों के अभाव का तो सवाल ही नहीं था।

त्तर प्रदेश पुलिस लाख प्रयासों के बावजूद उसे पकड़ नहीं सकी और वह पुलिस के साथ आंखमिचौली करते हुए जगह जगह घूमता रहा, जगह जगह पुलिस की चौकसी के बावजूद 800 कि.मी. का सफर सड़क मार्ग से तय कर लिया और मंदिर के चौकीदारों से अपने को पकड़वाया। कम से कम साक्ष्य तो यही इंगित कर रहें हैं कि उसनें अपनी मर्जी से सरेंडर किया अब यह तो एक अंधा भी समझ सकता है कि जब दुबारा भागना ही था तो फिर सरेंडर क्यों किया?

फिर भी जब उसने यह मूर्खता दिखाई तो उसके पैरों में भी गोली मारी जा सकती थी लेकिन अगर अपराधी के हाथ में पिस्तौल थी तो फिर सामने से आकर गोली मारने का दु:साहस किसने किया जबकि सबको पता था कि वह एक दूर्दांत अपराधी था! अब घटना घटी है तो सवाल तो उठेंगे ही और जवाब भी सरकार को ही देने पड़ेंगे। अब तो राजनीतिक दलों के साथ ही आम जनता में भी यह आवाज उठ रही है कि कहीं सियासतदानों के राज दफन के लिए, एक को कफ़न ओढ़ाना पड़ा। ताकि “एक के कफ़न में कितनों के राज दफन” हो सके।

इस तरह सरकार का सफेदपोश सियासतदानों को अभयदान देते हुए न्यायिक प्रक्रिया की कार्य प्रणाली पर संदेह को इंगित करना है।

वैसे अपराध और सियासत का खेल तो आजादी के कुछ समय बाद ही शुरू हो गया था। उत्तर प्रदेश में भी इसकी शुरुआत संभवतः गोरखपुर से हुई जो धीरे धीरे पूरे प्रदेश को अपने आगोश में जकड़ लिया जिसे भरपूर खाद पानी क्षेत्रीय दलों से मिला जिसनें अपराध जगत को भरपूर फलने फूलने का अवसर दिया जो आज सियासत की एक कमजोर कड़ी बन गई है जिससे आज कोई भी दल अछूता नहीं है।

ज सियासत और अपराध राजनीति के मुख्य स्तंभ बन गए जो किसी से छिपा नहीं है। माननीय सुप्रीम कोर्ट ने भी इशारे से राजनीतिक दलों को कई बार आगाह करने की कोशिश की है लेकिन सभी राजनीतिक दलों की एक ही बिरादरी है। मंचों पर सभी एक दूसरे पर उंगली उठाते नजर आते है लेकिन अंदरखाने सबकी खिचड़ी एक ही तसली में पकती है! एक दूसरे के घोटालों की पोल परत दर परत खोलने पर आमादा जब कार्यवाई की बात आती है तो सिस्टम की ओट में छिपने लगते हैं। इतिहास गवाह है कि कोई नेता जेल गया या सजा हुई तो माननीय सुप्रीम कोर्ट के ही पहल पर हुई।

ज भी माननीय सुप्रीम कोर्ट को संज्ञान में लेते हुए पहल करने की जरूरत है ताकि गलत परंपराओं का अंत हो सके और अपराध की जड़ पर प्रहार कर राजनीति से अपराध का सफाया हो सके। साफ सुथरी राजनीति से ही अपराध की जड़ें उखड़ेगी और सभ्य समाज का अभ्युदय होगा।

‘Uttar Pradesh’ बचाने के लिए Congress को लाना आवश्यक: Digvijay Singh


भोपाल, 11 जुलाई: कांग्रेस के वरिष्ठ नेता एवं राज्यसभा सांसद दिग्विजय सिंह ने उत्तरप्रदेश में जंगल राज स्थापित होने का आरोप लगाते हुए आज कहा कि ‘उत्तरप्रदेश’ बचाने के लिए कांग्रेस को लाना आवश्यक है।

दिग्विजय सिंहने ट्वीट में लिखा है ‘जब से उत्तरप्रदेश से कांग्रेस सत्ता से बाहर हुयी है, पूरे प्रदेश में जंगल राज स्थापित हो गया है। अपराधियों और राजतंत्र ने साझेदारी में मिलकर प्रदेश को लूटा है। यदि विकास दुबे का एनकाउंटर नहीं होता तो राज खुलते। अब वही साझेदारी पनपती रहेगी। प्रियंका जी व कांग्रेस लाओ और उत्तरप्रदेश बचाओ।’

कानून व्यवस्था के मुद्दे को लेकर कांग्रेस आक्रामक


लखनऊ, 07 जुलाई: उत्तर प्रदेश में कानून व्यवस्था के मुद्दे को लेकर आक्रामक कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने मंगलवार को जमकर प्रदर्शन किया। राज्यपाल को ज्ञापन सौंपने को तैयार प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू समेत अन्य नेताओं और कार्यकर्ताओं को पुलिस ने कांग्रेस दफ्तर से बाहर निकलते ही हिरासत में ले लिया जबकि देर शाम सभी काे रिहा कर दिया गया।

हिरासत में लिये गये नेताओं में लल्लू के अलावा विधान परिषद दल की नेता आराधना मिश्रा ‘मोना, पूर्व मंत्री नसीमुद्दीन सिद्दीकी, अनु जाति विभाग के प्रभारी प्रदीप नरवाल, अनु जाति विभाग के अध्यक्ष आलोक प्रसाद, उपाध्यक्ष तनुज पुनिया के अलावा कार्यकर्ता शामिल थे। सभी को बसों में भरकर इको गार्डेन ले जाया गया जहां से शाम को उन्हे रिहा किया गया।

हिरासत से छूटने के बाद श्री लल्लू ने कहा कि उत्तर प्रदेश में जंगलराज चल रहा है। पूरे सूबे में संवैधानिक व्यवस्था चरमरा कर ध्वस्त हो गयी है। अपराधी और गुंडों को योगी सरकार का संस्थागत संरक्षण मिला हुआ है। अपराधियों और गुंडों की योगी सरकार के मंत्रियों सहित अफसरों से करीबी रिश्ते उजागर हो गए है। तमाम वीडियो और वायरल हो रहे फोटो में इनकी निकटता सामने आ चुकी है।

उन्होंने कहा कि योगी राज में संविधान को ताक पर रख दिया गया है। कभी ऐसा नहीं हुआ है कि राज्यपाल को ज्ञापन देने सौंपने जा रहे लोगो को गैरकानूनी तरीके से गिरफ्तार किया गया हो। यूपी में योगी सरकार की तानाशाही और अत्याचार की इन्तिहा हो गयी है। उन्होने सवाल किया है कि क्या किसी राष्ट्रीय पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष को प्रदेश के संवैधानिक मुखिया से मिलकर ज्ञापन देना आपराधिक कृत्य है। उन्होने सरकार के इशारे पर ज्ञापन देने जाते समय गिरफ्तार किये जाने पर कड़ा रोष व्यक्त किया है।

कांग्रेस विधानमंडल दल की नेता आराधना मिश्रा ‘मोना’ ने कहा कि कानपुर में 8-8 पुलिस अधिकारियों एवं कर्मचारियों की हुई हत्या के बाद जो खुलासे मीडिया के माध्यम से सामने आ रहे हैं उससे यह साफ हो गया है कि योगी सरकार में पुलिस विभाग और अपराधियों की संलिप्तता का ही यह दुर्भाग्यपूर्ण परिणति है। जब आम जनता को सुरक्षा देने वाले ही सुरक्षित नहीं हैं तो आम जनता की सुरक्षा की जिम्मेदारी कौन लेगा। प्रदेश में पूरी तरह अराजकता और जंगलराज कायम हो गया है। मुख्यमंत्री का शासन-प्रशासन और पुलिस पर नियंत्रण नहीं रह गया है। अपराधी बेलगाम हो चुके हैं।

Sukhdev Singh Dhindsa ने अपनी नई पार्टी को शिअद का नाम देकर गैरकानूनी कार्य किया: Dr Daliit Singh Cheema


चंडीगढ़, 07 जुलाई: शिरोमणि अकाली दल (शिअद) प्रवक्ता डॉ़ दलजीत सिंह चीमा ने आज आरोप लगाया कि सुखदेव सिंह ढींडसा ने अपनी नई पार्टी को शिअद का नाम देकर गैरकानूनी कार्य किया है और ऐसा उन्होंने कांग्रेस के निर्देश पर ‘साजिश‘ के तहत किया है जो कभी सफल नहीं होगी।



यहां संवाददाता सम्मेलन में शिअद उपाध्यक्ष डॉ़ चीमा ने कहा, “एक मोहल्ला स्तर की बैठक कर कोई सौ साल पुरानी पार्टी की जगह लेने का दावा नहीं कर सकता।“ उन्होंने कहा कि नई पार्टी बनाना श्री ढींडसा का लोकतांत्रिक अधिकार है लेकिन उनकी आपत्ति पार्टी को शिरोमणि अकाली दल का नाम देने पर है।

डॉ़ चीमा ने कहा कि श्री ढींडसा शिअद का हिस्सा रह चुके हैं। वह जानते हैं कि पार्टी का संविधान, ढांचा होता है और उसके पदाधिकारी व अध्यक्ष सदस्य चुनते हैं इसलिए श्री ढींडसा के कद के व्यक्ति को ऐसी हरकत शोभा नहीं देती।“

शिअद प्रवक्ता ने आरोप लगाया कि श्री ढींडसा ने यह कांग्रेस के इशारे पर किया है।

डॉ़ चीमा ने यह भी आरोप लगाया कि श्री ढींडसा ने शिअद (टकसाली) अध्यक्ष रंजीत ब्रह्मपुरा के साथ भी गलत किया है क्योंकि श्री ढींडसा ने श्री ब्रह्मपुरा के अस्पताल से छुट्टी पाने का इंतजार नहीं किया और शिअद (टकसाली) के अध्यक्ष बनाये जाने के उनके प्रस्ताव को भी ठकुराया।

डॉ़ चीमा ने आरोप लगाया कि ढींडसा गुट व आम आदमी पार्टी कांग्रेस के सोशल मीडिया एजेंट बन चुके हैं और दोनों पार्टियां कांग्रेस के इशारे पर शिअद के खिलाफ बड़ा गठजोड़ बनाना चाहती हैं पर लोग इस साजिश को समझ सकते हैं और दोनों को खारिज कर देंगे।